पटना: बिहार में सरकारी नौकरियों के लिए अब Upper Caste EWS (Economically Weaker Sections) उम्मीदवारों को भी उम्र सीमा में राहत मिल सकती है। इस दिशा में पहली बार एक औपचारिक सिफारिश सामने आई है। बिहार उच्च जाति विकास आयोग ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार से आग्रह किया है कि आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को भी नौकरी में उम्र सीमा में छूट दी जाए, ठीक वैसे ही जैसे SC/ST और OBC वर्ग को दी जाती है।
यह महत्वपूर्ण मांग आयोग की पहली बैठक में उठी, जिसकी अध्यक्षता डॉ. महाचंद्र प्रसाद सिंह ने की। आयोग का कहना है कि सवर्ण गरीब भी सरकारी नौकरियों में समान अवसर के हकदार हैं और उम्र सीमा में छूट उनके लिए एक सकारात्मक पहल होगी।
तीन उप-समितियां गठित, सवर्ण छात्रों के लिए छात्रावास और कोचिंग पर भी जोर
बैठक में यह तय किया गया कि आयोग इस विषय पर गहन अध्ययन करेगा। इसके लिए तीन उप-समितियों का गठन किया गया है:
- पहली उप-समिति, जिसकी अध्यक्षता राजकुमार सिंह करेंगे, वह जातिगत जनगणना की रिपोर्ट का विश्लेषण कर सवर्ण गरीबों को उम्र छूट देने की संभावनाओं का आकलन करेगी।
- दूसरी उप-समिति सवर्ण छात्रों के लिए छात्रावास निर्माण की आवश्यकता पर रिपोर्ट तैयार करेगी।
- तीसरी उप-समिति कोचिंग सेंटरों और मार्गदर्शन व्यवस्था की जरूरतों पर काम करेगी।
इन सभी समितियों की रिपोर्ट के आधार पर आयोग सरकार को विस्तृत सुझाव देगा।
क्या EWS को मिलेगी उम्र छूट? केंद्र ने 2019 में किया था इनकार
गौरतलब है कि वर्तमान में SC/ST उम्मीदवारों को अधिकतम उम्र सीमा में 5 साल और OBC को 3 साल की छूट मिलती है। लेकिन EWS वर्ग के लिए ऐसी कोई छूट नहीं दी गई है, भले ही उन्हें 10% आरक्षण का लाभ मिलता है।
2019 में जब केंद्र सरकार के पास यह प्रस्ताव गया था, तब Department of Personnel and Training (DoPT) ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि EWS को पहले से ही आरक्षण का लाभ मिल रहा है, और अतिरिक्त उम्र छूट आवश्यक नहीं है।
आगे का रास्ता: नीतीश सरकार के फैसले पर टिकी निगाहें
अब सभी की नजर बिहार सरकार पर है कि वह आयोग की इस मांग पर क्या रुख अपनाती है। अगर नीतीश सरकार EWS वर्ग के सवर्ण उम्मीदवारों को उम्र छूट देने का फैसला लेती है, तो यह एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन माना जाएगा।
यह निर्णय न केवल सवर्ण गरीबों को सरकारी नौकरियों में प्रवेश का मौका देगा, बल्कि सामाजिक समावेश (social inclusion) को भी बढ़ावा देगा, जिससे बिहार में सामाजिक न्याय की अवधारणा को और मजबूती मिल सकती है।