1.50 करोड़ बिहारी वोट नहीं डाल पाएंगे? फारूक अब्दुल्ला का बड़ा दावा, उठाया संविधान पर सवाल!

फारूक अब्दुल्ला ने बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन को बताया संविधान के खिलाफ, आंबेडकर का नाम लेकर दी आंदोलन की चेतावनी

Bihar Voter List Dispute Farooq Abdullah Ambedkar
Bihar Voter List Dispute Farooq Abdullah Ambedkar (Source: BBN24/Google/Social Media)
मुख्य बातें (Highlights)
  • फारूक अब्दुल्ला बोले- 1.50 करोड़ बिहारी बाहर हैं, वे वोट कैसे देंगे?
  • निर्वाचन आयोग के कदम को बताया संविधान विरोधी
  • कहा- “अगर रोका नहीं गया तो होगा बड़ा आंदोलन”

नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने बिहार में Election Commission द्वारा चलाए जा रहे विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान पर गहरी आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे न सिर्फ असंवैधानिक करार दिया, बल्कि इसे देश के लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला बताया।

कश्मीर के Kulgam में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अब्दुल्ला ने कहा, “1.50 करोड़ से ज्यादा बिहारी आज अपने घर से दूर दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं। ऐसे में वे मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ कैसे जमा करेंगे? वे फॉर्म कहां से भरेंगे और मृतक माता-पिता का प्रमाणपत्र कहां से लाएंगे?”

“संविधान की आत्मा के खिलाफ है ये कदम” – फारूक अब्दुल्ला

Farooq Abdullah ने इस पूरी प्रक्रिया को संविधान विरोधी बताते हुए कहा कि जब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान लिखा था, तब उन्होंने हर नागरिक को वोट देने का अधिकार दिया था। बाद में 18 वर्ष से अधिक उम्र वालों को भी यह अधिकार मिला। लेकिन अब निर्वाचन आयोग एक ऐसा कदम उठा रहा है जो सीधे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

उन्होंने तीखे शब्दों में कहा, “यह सरकार अपने आका को खुश करने के लिए लोकतंत्र और संविधान दोनों की बलि चढ़ा रही है। वे सब कुछ त्याग सकते हैं पर मालिक को खुश करना है।”

“बड़ा आंदोलन होगा अगर नहीं रुका यह खेल”

अब्दुल्ला ने आगे चेतावनी भरे लहजे में कहा कि यदि इस ‘षड्यंत्र’ को नहीं रोका गया तो देश में संविधान बचाने के लिए एक बड़ा आंदोलन खड़ा होगा—जो पहले के हर आंदोलन से बड़ा होगा। उन्होंने कहा, “अल्लाह उन्हें सद्बुद्धि दे कि वे संविधान को समझें और बचाएं।”

क्या है पूरा मामला?

24 जून को Election Commission ने बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू करने के निर्देश दिए थे। इसका मकसद अपात्र लोगों के नाम हटाना और केवल योग्य मतदाताओं के नाम शामिल करना है। बता दें, बिहार में आखिरी बार ऐसा बड़ा पुनरीक्षण साल 2003 में किया गया था।

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