बिहार में अल्पसंख्यकों को नई ताक़त, JDU नेता Ghulam Rasool Baliyavi बने Bihar State Minority Commission के अध्यक्ष

मुख्यमंत्री Nitish Kumar ने वक्फ बिल पर नाराज चल रहे मुस्लिम नेता को दी बड़ी जिम्मेदारी, आयोग में 10 सदस्य भी नियुक्त

Bihar State Minority Commission Ghulam Rasool Baliyavi Appointed Chairman
(Image Source: Social Media Sites)

बिहार में आयोगों के गठन की लंबित प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए मुख्यमंत्री Nitish Kumar ने एक अहम फैसला लिया है। उन्होंने Bihar State Minority Commission (बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग) का गठन कर दिया है। इस आयोग के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी Janata Dal United के वरिष्ठ मुस्लिम नेता Ghulam Rasool Baliyavi को सौंपी गई है। इसके अलावा आयोग में कुल 10 अन्य सदस्यों को भी शामिल किया गया है।

नाराज चल रहे थे Ghulam Rasool Baliyavi, वक्फ बिल पर जताई थी नाखुशी

जानकारी के अनुसार Ghulam Rasool Baliyavi बीते कुछ समय से पार्टी से नाराज चल रहे थे। खास तौर पर Wakf Bill के मसले पर उन्होंने JDU से अलग मत प्रकट किया था। हाल ही में उन्होंने बयान दिया था कि वे पहले Edara-e-Sharif के नायब हैं, फिर जदयू नेता। उन्होंने कहा था कि पार्टी में रहेंगे या नहीं, यह फैसला जल्द लेंगे। हालांकि अब मुख्यमंत्री Nitish Kumar ने उन्हें Minority Commission का चेयरमैन बनाकर उन्हें फिर से पार्टी की मुख्यधारा में लाने की कोशिश की है।

इन्हें बनाया गया आयोग का उपाध्यक्ष

Ghulam Rasool Baliyavi के साथ-साथ आयोग में दो उपाध्यक्ष भी नियुक्त किए गए हैं — Khavindar Singh और Maulana Umar Noorani। यह फैसला विभिन्न समुदायों को प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से लिया गया है।

आयोग में ये 10 लोग बने सदस्य

बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग में 10 अन्य सदस्यों को नामित किया गया है, जिनमें शामिल हैं:

  • Mukesh Kumar Jain
  • Afroza Khatoon
  • Ashraf Ali Ansari
  • Shamshad Alam alias Md. Shamshad Bhai
  • Tufail Ahmad Khan
  • Shishir Kumar Das
  • Rajesh Kumar Jain
  • Ajfar Shamshi

इन नामों से स्पष्ट है कि आयोग में विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों का संतुलन बनाकर प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की गई है।

निष्कर्ष

मुख्यमंत्री Nitish Kumar का यह कदम न केवल अल्पसंख्यक समुदाय के बीच भरोसा कायम करेगा, बल्कि पार्टी के भीतर नाराज नेताओं को साधने की रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है। आने वाले चुनावी साल Goal 2025 को देखते हुए यह फैसला बेहद अहम माना जा रहा है।

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