बिहार के अररिया जेल में एक सजायाफ्ता कैदी की संदिग्ध मौत ने प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मृतक की पहचान Shibu Ghosh (25 वर्ष), पिता स्वर्गीय गंगाधर घोष, निवासी फूलडंगा, जिला मालदा (पश्चिम बंगाल) के रूप में हुई है। Shibu Ghosh को शराब तस्करी के मामले में 21 अगस्त 2020 को गिरफ्तार किया गया था और 23 फरवरी 2021 को पांच साल की सजा सुनाई गई थी।
परिवार का आरोप है कि जेल प्रशासन की लापरवाही के कारण ही उनकी मौत हुई है। भाई Indra Ghosh का कहना है कि जेल में कैदी की हालत नाजुक थी, लेकिन उसे समय पर इलाज नहीं मिला।
परिवार का आरोप – “गोद में उठाकर लाए, कुछ बोल नहीं रहा था”
Shibu Ghosh के भाई Indra Ghosh ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने बुधवार को भाई से मुलाकात के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था। गुरुवार को वे अपनी पत्नी Pampa Ghosh के साथ जेल पहुंचे। वहां दो पुलिसकर्मी उनके भाई को गोद में उठाकर लाए, जो बेहोश था और कुछ बोल नहीं रहा था। बाद में उसे टोटो पर लादकर सदर अस्पताल लाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
पहले भी चल रहा था इलाज, लेकिन क्यों बिगड़ी हालत?
जेल प्रशासन के मुताबिक Shibu Ghosh पिछले दो वर्षों से बीमार था। उसे पहले अररिया सदर अस्पताल, फिर भागलपुर मेडिकल कॉलेज और बाद में PMCH Patna में रेफर किया गया था। वहीं परिवार का कहना है कि बीमारी की जानकारी होने के बावजूद भी कैदी को पर्याप्त देखभाल नहीं मिली।
दो महीने में होनी थी रिहाई, लेकिन उससे पहले ही मौत
जानकारी के मुताबिक Shibu Ghosh अपनी पांच साल की सजा में से 4 साल 10 महीने की सजा काट चुका था। अब सिर्फ दो महीने बाकी थे, लेकिन इससे पहले ही उसकी जान चली गई। इस बात ने परिजनों की पीड़ा और शक दोनों को गहरा कर दिया है।
जेल में लगातार घटनाएं, प्रशासन पर उठे सवाल
गौरतलब है कि बुधवार को भी जेल में एक अन्य कैदी ने पेड़ से लटककर आत्महत्या की कोशिश की थी, जिसे समय रहते बचा लिया गया। लगातार हो रही घटनाओं के कारण अररिया जेल प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
जांच की मांग और प्रशासन की चुप्पी
घटना के बाद जेल अधीक्षक Sujit Kumar Jha ने बताया कि मृत कैदी गंभीर रूप से बीमार था और इलाज चल रहा था। हालांकि परिवार और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस बयान को नाकाफी बताते हुए न्यायिक जांच की मांग की है।
जेल में हो रही मौतों और लापरवाहियों के बीच यह सवाल उठता है – क्या सजा काट रहे कैदियों की जान की कोई कीमत नहीं?