बिहार वोटर लिस्ट घोटाला? तेजस्वी यादव ने उठाए बड़े सवाल, EC की भूमिका पर गहराया सस्पेंस

तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग पर लगाया विरोधाभासी आदेश जारी करने का आरोप, कांग्रेस ने किया 9 जुलाई को बिहार बंद का ऐलान

Bihar Voter List Verification Tejashwi Questions Ec
Bihar Voter List Verification Tejashwi Questions Ec (Source: BBN24/Google/Social Media)

बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। इस बार मुद्दा है – वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन (Voter List Verification)। सोमवार को RJD नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने चुनाव आयोग से तीखे सवाल पूछते हुए कहा कि आयोग विरोधाभासी निर्देश जारी कर रहा है और आधार कार्ड को मान्यता न देना संदेह को जन्म देता है।

तेजस्वी यादव ने दावा किया कि उन्होंने 5 जुलाई को चुनाव आयोग से मुलाकात की थी और इस संबंध में अपनी चिंताएं साझा की थीं। लेकिन अब तक आयोग की ओर से कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “बिहार का चुनाव आयोग एक डाकघर की तरह काम कर रहा है – जो केवल संदेश भेजता है, जवाब नहीं देता।”

तेजस्वी ने आरोप लगाया कि आयोग की कार्यशैली भ्रमित करने वाली है। उन्होंने कहा, “तीन अलग-अलग निर्देश जारी हुए, जिनमें आपसी विरोधाभास है। विज्ञापन कहता है कि बिना दस्तावेज भी फॉर्म जमा हो सकता है, जबकि आदेश कुछ और कहते हैं।”

आधार कार्ड को लेकर सबसे बड़ा सवाल

तेजस्वी ने चुनाव आयोग से पूछा – “अगर नया वोटर कार्ड बनवाने के लिए आधार कार्ड मान्य है, तो वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन में इसे खारिज क्यों किया जा रहा है?” उन्होंने पारदर्शिता की मांग करते हुए कहा कि आयोग को स्पष्ट रूप से जवाब देना चाहिए।

उन्होंने यह भी जानना चाहा कि इस पुनरीक्षण कार्य में कौन-कौन लोग लगे हैं – क्या वे सरकारी कर्मचारी हैं या किसी निजी एजेंसी से हैं? तेजस्वी ने कहा कि आयोग को इन लोगों की सूची सार्वजनिक करनी चाहिए।

कांग्रेस का हमला और बिहार बंद की चेतावनी

तेजस्वी के आरोपों के बीच कांग्रेस पार्टी ने भी चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। कांग्रेस ने कहा कि आयोग खुद तय नहीं कर पा रहा कि कौन-सा आदेश लागू है और कौन-सा नहीं। पार्टी ने साफ किया कि 9 जुलाई को पूरे बिहार में ‘चक्का जाम’ किया जाएगा। इस आंदोलन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी शामिल होंगे।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह मुद्दा आने वाले चुनावों की पृष्ठभूमि में बेहद अहम है। मतदाता सूची से जुड़ी पारदर्शिता पर सवाल उठना न सिर्फ आयोग की साख पर असर डालता है, बल्कि बिहार की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है।

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