नीतीश सरकार के मंत्री Jivesh Mishra नकली दवा केस में दोषी, विपक्ष ने मांगा इस्तीफा, BJP पर भी दबाव

15 साल पुराने नकली दवा मामले में दोषी ठहराए गए Jivesh Mishra, कांग्रेस ने BJP से निष्कासन की मांग की, कोर्ट ने जुर्माना लगाकर छोड़ा

Jivesh Mishra Fake Medicine Case Verdict Congress Demands Resignation
Jivesh Mishra Fake Medicine Case Verdict Congress Demands Resignation (Source: BBN24/Google/Social Media)

बिहार की नीतीश कुमार सरकार में नगर विकास मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता Jivesh Mishra को नकली दवाओं के एक पुराने मामले में दोषी ठहराया गया है। राजस्थान की राजसमंद कोर्ट ने Jivesh Mishra समेत 9 लोगों को 4 जून 2025 को दोषी करार दिया था। कोर्ट ने 1 जुलाई को सुनवाई में अर्थदंड लगाकर उन्हें अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के तहत सशर्त रिहाई दे दी।

कांग्रेस ने मांगा इस्तीफा, BJP से निष्कासन की मांग

मामले को लेकर विपक्ष ने नीतीश सरकार पर बड़ा हमला बोला है। कांग्रेस के मीडिया विभाग प्रमुख Rajesh Rathore ने मंत्री Jivesh Mishra का इस्तीफा मांगते हुए कहा कि “यह शर्मनाक है कि एक दोषी व्यक्ति अब भी मंत्री पद पर बना हुआ है।” उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से Mishra को तत्काल निष्कासित करने और उनके नकली दवा नेटवर्क की जांच कराने की मांग की।

पूर्णिया के सांसद Pappu Yadav ने भी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मंत्री को बर्खास्त करने की अपील की। उन्होंने आरोप लगाया कि मंत्री Jivesh Mishra नकली दवाओं का कारोबार कर जनता की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं।

विधायक हैं जाले से, जनता से की अपील

Pappu Yadav ने जनता से अपील करते हुए कहा कि “दरभंगा जिले के जाले की जनता को आगामी चुनाव में ऐसे नेताओं को सबक सिखाना चाहिए, जो जनसेवा की जगह जहर बेचते हैं।”

क्या है मामला?

यह मामला सितंबर 2010 का है, जब राजस्थान के Devgarh (Rajsamand) स्थित Kansara Drugs Distributors पर ड्रग्स विभाग ने छापेमारी की थी। यहां से लिए गए सैंपल में Ciprolin-500 टेबलेट को अमानक और मिलावटी पाया गया। जांच में सामने आया कि इन दवाओं की आपूर्ति Alto Healthcare Pvt. Ltd. समेत तीन कंपनियों ने की थी, जिनमें से एक के निदेशक Jivesh Mishra थे।

कोर्ट का फैसला और राहत

राजसमंद कोर्ट ने 4 जून को सभी आरोपियों को दोषी पाया। 1 जुलाई को सजा सुनाई गई, जिसमें Jivesh Mishra पर ₹7,000 का जुर्माना लगाया गया और उन्हें अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के तहत सशर्त छोड़ा गया। कोर्ट ने उनके भविष्य में सदाचार बनाए रखने की शर्त भी रखी।

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