अब आदिवासी धर्म को मिलेगा पहचान? राहुल गांधी से मुलाकात में उठा “सरना कोड” का मुद्दा

राहुल गांधी की अध्यक्षता में आदिवासी नेताओं ने दिल्ली में की अहम बैठक, मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की और सांसद सुखदेव भगत ने रखा सरना धर्म कोड का प्रस्ताव।

Rahul Gandhi Meeting Tribal Leaders Sarna Code Demand
Rahul Gandhi Meeting Tribal Leaders Sarna Code Demand (Source: BBN24/Google/Social Media)
मुख्य बातें (Highlights)
  • राहुल गांधी की अध्यक्षता में दिल्ली में हुई ऑल इंडिया आदिवासी कांग्रेस की बैठक
  • शिल्पी नेहा तिर्की ने भूमि विवाद, सरना कोड और जनगणना मुद्दे उठाए
  • सुखदेव भगत ने जनगणना फॉर्म में सातवें कॉलम की मांग की

दिल्ली के 10 जनपथ स्थित आवास पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अध्यक्षता में ऑल इंडिया आदिवासी कांग्रेस की एक अहम बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में झारखंड, मध्यप्रदेश और राजस्थान के आदिवासी सांसद और विधायक शामिल हुए।

झारखंड के लोहरदगा से सांसद सुखदेव भगत ने जातिगत जनगणना में “सातवां कॉलम” जोड़ने और उसमें सरना धर्म कोड को शामिल करने की पुरजोर मांग की। उन्होंने कहा कि यह आदिवासी अस्मिता को पहचान दिलाने का महत्वपूर्ण कदम होगा।

बैठक के बाद झारखंड सरकार में मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर बताया कि उन्होंने सरना कोड, ट्राइबल लीगल काउंसिल और परिसीमन जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर परिसीमन के बाद आदिवासी सीटें सुरक्षित नहीं रहीं, तो आदिवासी पहचान ही समाप्त हो जाएगी।

शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा कि पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार के दौरान लैंड डिजिटाइजेशन के नाम पर कई आदिवासी परिवारों को उनकी जमीनों से बेदखल किया गया। गलत नामों और प्लॉट नंबरों के कारण लोग वर्षों से अंचल कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं।

उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य में ट्राइबल लीगल काउंसिल का गठन हो, ताकि आदिवासियों की भूमि संबंधी समस्याओं का समय पर समाधान हो सके। उन्होंने गांव-गांव में भूमि सुधार शिविर चलाने की बात भी कही।

जनगणना 2026 में प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए “सरना धर्म कॉलम” जोड़ने की भी मांग की गई। यह कोड उनकी धार्मिक पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देगा।

जादूगोड़ा (सिंहभूम) में न्यूक्लियर वेस्ट डंपिंग पर भी चिंता जताई गई, जिससे स्थानीय आदिवासी विकलांगता के शिकार हो रहे हैं। तिर्की ने इसके तत्काल पुनर्वास की मांग की।

शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा, “अगर झारखंड में परिसीमन हुआ और पूर्व में आरक्षित सीटें खत्म हो गईं, तो आदिवासियों का राजनीतिक अस्तित्व ही मिट जाएगा।”

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