Patna: बिहार सरकार ने चार साल के लंबे इंतजार के बाद सरोगेसी (Surrogacy) को कानूनी मान्यता दे दी है। अब राज्य में निःसंतान दंपत्ति भी कानूनी रूप से सरोगेसी का सहारा लेकर माता-पिता बनने का सपना साकार कर सकेंगे। इसके लिए एक 24 सदस्यीय मॉनिटरिंग बोर्ड का गठन किया गया है, जिसमें डॉक्टर, विधायक, सामाजिक कार्यकर्ता और महिला अधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। यह बोर्ड पूरे प्रक्रिया की निगरानी करेगा और सुनिश्चित करेगा कि सब कुछ कानून के दायरे में और सुरक्षित तरीके से हो।
अब तक राज्य के जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित थे, उन्हें सरोगेसी के लिए Jharkhand या West Bengal जैसे राज्यों का रुख करना पड़ता था, जहां खर्च ज्यादा और प्रक्रिया जटिल थी। लेकिन अब बिहार में ही Patna सहित प्रमुख शहरों में विशेष क्लिनिक और IVF सेंटर्स की स्थापना की जाएगी, जिससे प्रक्रिया आसान और सस्ती हो जाएगी।
Dr Dayanidhi, जो इस बोर्ड के सदस्य और Indira IVF के चीफ एम्ब्रायोलॉजिस्ट हैं, उन्होंने बताया कि सरोगेसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी और महिला की कोख में दंपत्ति के अंडाणु और शुक्राणु से निषेचित भ्रूण प्रत्यारोपित किया जाता है। भारत में सिर्फ “Altruistic Surrogacy” की अनुमति है, यानी सरोगेट मां को आर्थिक लाभ नहीं दिया जा सकता, सिर्फ मेडिकल और बीमा संबंधी खर्च ही दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया की शुरुआत से पहले दंपत्ति और सरोगेट मां दोनों की सहमति जरूरी होती है।
कौन लोग इस प्रक्रिया का लाभ ले सकते हैं, इस पर भी नियम तय किए गए हैं। केवल विवाहित भारतीय दंपत्ति, या विधवा और तलाकशुदा महिलाएं एक निश्चित आयु सीमा में सरोगेसी के पात्र हैं। वहीं, अविवाहित पुरुष, लिव-इन पार्टनर, अविवाहित महिलाएं और विदेशी नागरिक इस प्रक्रिया के लिए पात्र नहीं हैं। साथ ही, कोई महिला केवल एक बार ही सरोगेट बन सकती है और प्राथमिकता उन्हीं को दी जाएगी जो उस दंपत्ति की करीबी रिश्तेदार हों।
बिहार सरकार के इस फैसले से राज्य के 18% से अधिक बेऔलाद दंपत्ति को नया जीवन मिलने की उम्मीद है। बोर्ड का मकसद न केवल सरोगेसी को सुरक्षित बनाना है, बल्कि अवैध सरोगेसी को रोकना और हर केस की सख्त जांच करना भी है। यह कदम बिहार को एथिकल सरोगेसी के क्षेत्र में अग्रणी राज्य बना सकता है।