भारत का रहस्यमयी गांव: जहां महिलाएं बिना मर्दों के बनती हैं मां, 300 साल पुरानी परंपरा का काला सच!

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में बसा 'बसुका गांव' आज भी वेश्यावृत्ति, तवायफों और मुजरा परंपरा को लेकर विवादों में घिरा है—जहां महिलाएं अपने दर्द को आज भी झूठ और बदनामी से लड़कर बयां कर रही हैं।

Basuka Village Ghazipur Secret Life
Basuka Village Ghazipur Secret Life (Source: BBN24/Google/Social Media)

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के भदौरा ब्लॉक के पास बसा बसुका गांव इन दिनों सोशल मीडिया और खबरों में सुर्खियों में है। वजह? गांव के बाहर की एक बस्ती में रहने वाली महिलाओं का यह दावा कि वे बिना पुरुषों के गर्भवती होती हैं और बच्चों को जन्म देती हैं।

यह दावा जितना अजीब लगता है, उतनी ही डरावनी है इस दावे के पीछे की सच्चाई। यह गांव आज भी तवायफों की बस्ती, वेश्यावृत्ति और मुजरा कला की वजह से जाना जाता है। यहां की 300 साल पुरानी परंपरा अब यहां की औरतों के लिए अभिशाप बन गई है।

मुजरे से वेश्यावृत्ति तक: कला से कलंक बना बसुका गांव

बसुका गांव के बाहरी हिस्से में वह बस्ती है, जहां आज़ादी से पहले मुजरे होते थे। लेकिन जैसे ही मुजरा बंद हुआ, यह पारंपरिक कला धीरे-धीरे वेश्यावृत्ति में बदल गई। अब यही बस्ती बिहार और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में ‘ऑर्केस्ट्रा डांसर’ की आपूर्ति करती है।

यहां के कुछ परिवार आज भी इसी पेशे से जुड़े हैं। इस गांव की महिलाएं खुद कैमरे पर आकर स्वीकार कर चुकी हैं कि उन्हें कम उम्र में इस धंधे में धकेल दिया गया। एक महिला ने बताया कि उसे महज़ 13 साल की उम्र में वेश्यावृत्ति के लिए तैयार किया गया।

तबस्सुम की कहानी: “बिना बाप के बेटे का नाम स्कूल में भाई के नाम से लिखवाना पड़ा”

तबस्सुम (बदला हुआ नाम), जो कभी इस धंधे का हिस्सा थीं, आज सबकुछ छोड़ चुकी हैं। वे कहती हैं, “जब अपने बेटे को स्कूल में नाम लिखाने गई, तो पिता की जगह भाई का नाम देना पड़ा। तब समझ आया कि मैं कितने गंदे काम में थी।”

अब उनके पास बनारस में 29 लाख का फ्लैट, गांव में पक्की जमीन और एसी वाला घर है। लेकिन वे चाहती हैं कि “जो मेरे साथ हुआ, वो किसी और लड़की के साथ न हो।”

कुछ लोग आज भी समर्थन में: “तवायफ वेश्या नहीं होती”

इस गांव के कुछ लोग वेश्यावृत्ति के आरोपों से इनकार करते हैं। जैसे कि तबलावादक मोहम्मद शाहिद का कहना है, “हम लोग गा-बजाकर ही पैसा कमाते हैं। हमारे दादा, परदादा भी यही करते थे।”

एक तवायफ गुड़िया का दावा है, “हम लोग ठुमरी और सोहर जैसे पारंपरिक गीत गाकर मनोरंजन करते हैं। हम वेश्या नहीं हैं। तवायफ और वेश्या में फर्क होता है।”

प्रशासन की दखल और खुली इजाज़त: तवायफों को ‘सम्मान के साथ’ जीने की छूट

कुछ साल पहले यहां की महिलाओं ने वेश्यावृत्ति के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। इसके बाद प्रशासन ने दखल देते हुए तवायफों को उनका पारंपरिक काम करने की इजाज़त दी।

फिलहाल गांव में माहौल शांत है, लेकिन यह सच्चाई अब भी छुपी हुई है कि यहां कई महिलाएं आज भी मजबूरी में इस धंधे का हिस्सा हैं।

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