धरती पर पहली बार नहीं है जब किसी उल्कापिंड ने दस्तक दी हो, लेकिन NWA 16788 नाम का यह उल्कापिंड विज्ञान और नीलामी की दुनिया में एक नया इतिहास रचने जा रहा है। यह पत्थर सीधे Mars (मंगल ग्रह) से आया है और इसका वजन 24.5 किलो है—जो अब तक मिला सबसे भारी Martian Meteorite है। इसे 2023 में Niger के सहारा रेगिस्तान में एक स्थानीय शिकारी ने खोजा था, जिसे शायद यह भी नहीं पता था कि उसने इतिहास की सबसे कीमती चट्टानों में से एक को छू लिया है।
16 जुलाई को होगी नीलामी, कीमत जानकर रह जाएंगे दंग
New York स्थित मशहूर नीलामी कंपनी Sotheby’s इस पत्थर की नीलामी 16 जुलाई 2025 को करने जा रही है। कीमत की बात करें तो यह $2 से $4 मिलियन यानी करीब ₹15 करोड़ से ₹34 करोड़ के बीच आंकी गई है। खास बात यह है कि भुगतान सिर्फ नकद या बैंक ट्रांसफर से ही नहीं, बल्कि Bitcoin, Ethereum और USDC जैसी क्रिप्टोकरेंसी में भी किया जा सकता है।
कितना दुर्लभ है NWA 16788 उल्कापिंड?
वैज्ञानिकों के अनुसार अब तक धरती पर करीब 77,000 उल्कापिंड पाए जा चुके हैं, जिनमें से केवल 400 उल्कापिंड ही मंगल से आए हैं। उनमें भी NWA 16788 अकेला उल्कापिंड 6.5% हिस्सेदारी रखता है। इससे पहले जो सबसे भारी Martian Meteorite मिला था, वह Taoudenni 002 था जिसका वजन 14.51 किलो था। नया उल्कापिंड उससे करीब 70% ज्यादा भारी है।
अंतरिक्ष से धरती तक का लंबा सफर
वैज्ञानिक मानते हैं कि लाखों साल पहले मंगल पर किसी बड़े asteroid की टक्कर से चट्टानों के टुकड़े अंतरिक्ष में उड़े थे। उन्हीं में से एक टुकड़ा करोड़ों किलोमीटर की यात्रा करके धरती पर गिरा। NWA 16788 की सतह को देखकर वैज्ञानिकों का मानना है कि यह हाल ही में गिरा है क्योंकि इसकी ऊपरी परत कम क्षतिग्रस्त है।
वैज्ञानिकों ने की पुष्टि, मिला आधिकारिक दर्जा
इस उल्कापिंड के एक छोटे टुकड़े को परीक्षण के लिए एस्ट्रोनॉमी म्यूजियम भेजा गया था। महीनों की जांच और प्रयोगशाला परीक्षणों के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह पत्थर मंगल से ही आया है। इसके बाद Meteorite Society ने जून 2024 में इसे आधिकारिक मान्यता दी।
दिखने में कैसा है यह उल्कापिंड?
NWA 16788 का रंग लाल और भूरा है—बिल्कुल मंगल की सतह जैसा। धरती के वायुमंडल में प्रवेश करते समय इसकी सतह पर कांच जैसी परतें बन गईं। इसका लगभग 21.2% हिस्सा maskelynite, pyroxene और olivine जैसे दुर्लभ खनिजों से बना है। यह बनावट इसे न सिर्फ दुर्लभ बनाती है, बल्कि वैज्ञानिकों के लिए रिसर्च का अमूल्य स्रोत भी बनाती है।
अभी तक कितनी लगी है बोली?
नीलामी से कुछ दिन पहले, 7 जुलाई 2025 तक इस उल्कापिंड की बोली $1.6 मिलियन तक पहुंच चुकी थी। संभावना है कि नीलामी के दिन इसकी कीमत और भी ऊंचाई छू सकती है। दुनियाभर के वैज्ञानिक संस्थान, संग्रहालय और निजी कलेक्टर इस अद्भुत खजाने को पाने की दौड़ में शामिल हैं।