Narayana Murthy की उस चर्चित टिप्पणी को शायद ही कोई भूला हो, जिसमें उन्होंने भारतीय युवाओं से सप्ताह में 70 घंटे काम करने की अपील की थी। लेकिन अब Infosys उसी सोच के बिल्कुल विपरीत दिशा में चल रही है। कंपनी ने एक नई नीति लागू की है, जिसके तहत यदि कोई कर्मचारी रोज़ाना 9 घंटे 15 मिनट से अधिक काम करता है, तो उसे ऑटोमेटिक वॉर्निंग अलर्ट मिलने लगता है।
एक कर्मचारी ने बताया कि जैसे ही रिमोट वर्किंग के दौरान निर्धारित समय से अधिक घंटे सिस्टम में लॉग हो जाते हैं, वैसे ही एक ईमेल वॉर्निंग आ जाती है जिसमें पूरा डेटा होता है – कितने दिन ऑफिस आए, कुल वर्किंग ऑवर्स क्या रहे, और औसत डेली वर्किंग कितनी थी।
हेल्थ अलर्ट या पॉलिसी शिफ्ट?
डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट्स लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि नींद की कमी, तनाव और असंतुलित जीवनशैली युवा आईटी प्रोफेशनल्स को दिल की बीमारियों की ओर धकेल रही है। 2013 से 2018 के बीच हुई एक स्टडी में सामने आया कि 25% युवा कार्डियक पेशेंट्स में पारंपरिक कारण नहीं थे, बल्कि स्ट्रेस ही सबसे बड़ा कारक था।
HR का मैसेज: ‘कमिटमेंट ठीक है, पर सेहत पहले’
इंफोसिस के एचआर डिपार्टमेंट की तरफ से जारी वॉर्निंग मेल में कर्मचारियों को सलाह दी गई है कि:
- बीच-बीच में ब्रेक लें
- किसी भी तरह का दबाव हो तो मैनेजर से बात करें
- ऑफ-टाइम में काम से जुड़ी कॉल्स और मैसेज से बचें
- टाइम मैनेजमेंट के लिए टीम से मदद मांगें
हाइब्रिड पॉलिसी का विस्तार
Infosys ने नवंबर 2023 में Hybrid Working Model लागू किया था, जिसके तहत सभी कर्मचारियों को महीने में कम से कम 10 दिन ऑफिस आना जरूरी है। अब रिमोट वर्किंग के ट्रैकिंग सिस्टम को इसी पॉलिसी का विस्तार माना जा रहा है, जिससे कंपनी सिर्फ टाइम ट्रैक नहीं कर रही, बल्कि सस्टेनेबल प्रोडक्टिविटी को बढ़ावा देना चाह रही है।
मूर्ति की सोच से उलट सोच?
Narayana Murthy का बयान – “वर्क-लाइफ बैलेंस जैसी कोई चीज़ नहीं होती, भारत को आगे बढ़ाने के लिए युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए” – एक समय पर काफी विवादों में रहा था। लेकिन अब उन्हीं की कंपनी इंफोसिस ने हसल कल्चर को पीछे छोड़ते हुए वर्क-लाइफ बैलेंस और हेल्थ को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है।
क्या यह पूरी इंडस्ट्री के लिए संकेत है?
इंफोसिस की यह पहल सिर्फ एक इंटरनल पॉलिसी नहीं बल्कि एक आइटी सेक्टर के ट्रेंड शिफ्ट का हिस्सा है। Genpact और TCS जैसी कंपनियां भी अब कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर नई गाइडलाइंस बना रही हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि अब “काम की मात्रा” नहीं, बल्कि “क्वालिटी” और “सेहत” को आधुनिक भारतीय वर्क कल्चर में अधिक महत्व दिया जा रहा है।