भारत में एक बार फिर बैंकिंग सेक्टर में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। 2014 के बाद पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और वित्त मंत्रालय ने नए बैंकिंग लाइसेंस जारी करने की संभावनाओं पर गंभीरता से विचार शुरू कर दिया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों संस्थाएं बैंकिंग सिस्टम को भविष्य के लिए मजबूत करने और दीर्घकालिक विकास के सपनों को पूरा करने के लिए बड़े कदम उठाने की योजना बना रही हैं।
क्यों जरूरी हो गया है नया बैंक?
देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में बैंकिंग सेवाओं की मांग और डिजिटल क्रांति ने वित्तीय संस्थानों पर दबाव बढ़ा दिया है। ऐसे में सरकार और RBI इस सेक्टर में नई जान फूंकने की तैयारी में हैं। सूत्रों की मानें तो कुछ चुनिंदा कॉर्पोरेट्स को सीमित शेयरहोल्डिंग के साथ बैंकिंग लाइसेंस दिए जा सकते हैं। इसके अलावा NBFCs को भी फुल बैंक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
कौन-कौन होंगे संभावित खिलाड़ी?
अगर यह नीति पास होती है, तो Adani Group, Tata Group, Reliance, और कुछ विदेशी निवेशक इस रेस में सबसे आगे माने जा रहे हैं। हालांकि, अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। फिर भी बाजार में हलचल दिखने लगी है।
शेयर बाजार में दिखा असर
इस खबर के बाद भारतीय शेयर बाजार में भी हलचल देखी गई। विशेष रूप से Nifty PSU Bank Index में दिन की शुरुआत में गिरावट आई, लेकिन दोपहर बाद तेजी से रिकवरी हुई। अब तक इस साल PSU बैंक इंडेक्स में लगभग 8% का उछाल आ चुका है, जो निवेशकों की उम्मीदों को दर्शाता है।
बैंकिंग लाइसेंस का इतिहास क्या कहता है?
भारत में बैंकिंग लाइसेंस देने की प्रक्रिया 1990 के दशक में शुरू हुई थी। इसके बाद 2014 में IDFC First Bank और Bandhan Bank को लाइसेंस दिए गए थे। 2016 में कुछ बड़े ग्रुप्स ने आवेदन किया था, लेकिन उन्हें मंजूरी नहीं मिल पाई। अब एक बार फिर वही चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं।
अब आगे क्या?
सूत्रों की मानें तो जल्द ही इस नीति को लेकर विस्तृत गाइडलाइन जारी की जा सकती है। अगर सब कुछ योजना के अनुसार चलता है, तो भारत में एक दशक बाद नए बैंक की एंट्री होगी – और यह किसी बड़े कॉर्पोरेट हाउस के नाम से हो सकता है। यह न सिर्फ बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाएगा, बल्कि ग्राहकों को भी बेहतर सेवाएं मिल सकती हैं।