केंद्र सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) की नई रिपोर्ट “भारत में पोषण सेवन” ने बिहार की पोषण स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में फैट का सेवन बढ़ा है जबकि कैलोरी और प्रोटीन की मात्रा घट गई है। यह ट्रेंड खासतौर पर शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में देखा गया है, जिससे स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंतित हैं।
कैलोरी और प्रोटीन में आई भारी गिरावट
2022-23 के मुकाबले 2023-24 में शहरी बिहार में प्रति व्यक्ति कैलोरी सेवन 2461 Kcal से घटकर 2289 Kcal हो गया। इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्र में यह आंकड़ा 2432 Kcal से गिरकर 2326 Kcal रह गया। प्रोटीन की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 68.7 ग्राम से गिरकर 57.6 ग्राम और शहरी क्षेत्रों में 69.8 ग्राम से घटकर 67 ग्राम रह गया।
मोटापा बढ़ा, पोषण घटा – फास्ट फूड बना बड़ा कारण
पोषण विशेषज्ञ डॉ. सुमिता कुमारी बताती हैं कि बिहार में फास्ट फूड की संस्कृति ने संतुलित आहार की अवधारणा को कमजोर कर दिया है। गांवों तक में तला-भुना खाना लोकप्रिय हो गया है, जिससे फैट का सेवन तो बढ़ गया, लेकिन प्रोटीन और फाइबर की भारी कमी दर्ज की गई है।
भोजन की आवृत्ति ज़्यादा, गुणवत्ता में गिरावट
MoSPI रिपोर्ट बताती है कि बिहार में लोग देश के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक बार भोजन कर रहे हैं — ग्रामीण क्षेत्रों में 30 दिन में औसतन 403 बार और शहरी क्षेत्रों में 401 बार। लेकिन यह केवल मात्रा है, गुणवत्ता नहीं। जरूरी पोषक तत्वों की कमी से कुपोषण और बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
पोषण स्तर अब वर्ग विशेष पर निर्भर
शहरी बिहार में 7.6% परिवार रोजाना 1860 Kcal से कम कैलोरी ले रहे हैं, जबकि 38% लोग 2790 Kcal से अधिक। ग्रामीण बिहार में 6.9% परिवार सबसे कम कैलोरी ले रहे हैं और 36.4% सबसे ज़्यादा। इससे स्पष्ट है कि बिहार में पोषण अब आय और सामाजिक वर्ग के आधार पर बंट रहा है।
प्रोटीन के स्रोतों में भी आया बदलाव
रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी क्षेत्रों में दूध से मिलने वाला प्रोटीन 13.5% तक पहुंच गया है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 10.9% पर ही है। वहीं, मांस, मछली और अंडे जैसे स्रोतों से मिलने वाला प्रोटीन भी शहरी क्षेत्रों में बढ़कर 12.8% हुआ है।
बच्चों के लिए खतरे की घंटी
डॉ. सुमिता कुमारी ने चेताया कि प्रोटीन की कमी खासकर बच्चों और किशोरों के लिए खतरनाक है। वे ग्रोथ के स्टेज में होते हैं और उन्हें संतुलित पोषण की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। अगर जल्द सुधार नहीं हुआ तो कुपोषण के साथ-साथ मोटापा, थायरॉइड और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां सामान्य हो जाएंगी।