बिहार में चल रहे वोटर लिस्ट स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision) को लेकर जहां पूरा विपक्ष एकजुट होकर विरोध कर रहा है, वहीं AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने सोमवार को चुनाव आयोग पहुंचकर इस मुद्दे पर संतुलित रुख अपनाया। ओवैसी ने कहा कि वे इस प्रक्रिया के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसके लिए पर्याप्त समय दिया जाना जरूरी है।
चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव अधिकारी से मुलाकात के बाद मीडिया से बातचीत में ओवैसी ने कहा कि अगर 15 से 20 प्रतिशत नाम भी वोटर लिस्ट से हट गए, तो कई लोग अपनी नागरिकता और मतदान का अधिकार दोनों खो देंगे। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ये केवल वोटिंग का ही नहीं, बल्कि आजीविका का सवाल भी बन सकता है।
ओवैसी ने उठाए गंभीर सवाल
Owaisi ने सवाल उठाया कि जब 2024 में लोकसभा चुनाव इन्हीं मतदाताओं के साथ सम्पन्न हो चुका है, तो अब उन्हीं से दस्तावेज क्यों मांगे जा रहे हैं? उन्होंने कहा कि अगर अब इन लोगों की मतदाता सूची से नाम कटते हैं, तो क्या इसका मतलब यह है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में अवैध तरीके से मतदान किया था?
लोकतांत्रिक अधिकारों पर संकट की आशंका
ओवैसी का कहना था कि यह प्रक्रिया अगर जल्दबाज़ी में पूरी की जाती है तो हजारों गरीब और दस्तावेज़ों से वंचित नागरिक सूची से बाहर हो सकते हैं। उन्होंने आयोग से अपील की कि Special Revision को उचित समय के साथ और पारदर्शी ढंग से पूरा किया जाए।
तेजस्वी यादव और INDIA गठबंधन का भी विरोध
इससे पहले INDIA गठबंधन और तेजस्वी यादव भी इस प्रक्रिया पर सवाल उठा चुके हैं। तेजस्वी ने कहा था कि जिन दस्तावेजों की मांग की जा रही है, वे गरीबों के पास नहीं होते। इस वजह से लाखों लोगों का नाम हट सकता है। तेजस्वी ने यह भी सवाल किया था कि लोकसभा चुनाव के बाद केवल बिहार में ही यह प्रक्रिया क्यों चलाई जा रही है?
सियासी गर्मी और प्रशासनिक पेंच
विपक्षी दल लगातार इस प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग अब तक अपने फैसले पर कायम है। ओवैसी की यह मुलाकात कहीं न कहीं सत्ता और विपक्ष के बीच संविधान और नागरिक अधिकारों को लेकर नए विमर्श को जन्म दे रही है।