धर्मशाला: तिब्बती धर्मगुरु Dalai Lama का 90वां जन्मदिन पूरे श्रद्धा और उत्साह से मनाया जा रहा है। भारत में निर्वासित जीवन जी रहे इस संत ने अपने अनुयायियों को चौंकाते हुए कहा है कि वे 130 साल तक जीवित रहेंगे। उनका ये दावा, उनकी आध्यात्मिक शक्ति और सेवा की भावना को दर्शाता है।
बर्थडे सेलिब्रेशन के मौके पर भारत सरकार के मंत्री किरण रिजिजु और लल्लन सिंह भी धर्मशाला में मौजूद रहे। दुनियाभर से बधाइयों का तांता लगा है — PM Narendra Modi, Barack Obama, George Bush, और Bill Clinton जैसे नेताओं ने शुभकामनाएं भेजी हैं।
जब भारत बना तिब्बतियों का सहारा – तेजपुर में हुआ था ऐतिहासिक स्वागत
1959 में जब चीन ने तिब्बत पर पूरी तरह कब्जा कर लिया, तो Dalai Lama को अपने परिवार और करीबियों के साथ भारत आना पड़ा। उनकी पहली दस्तक असम के Tezpur शहर में हुई। वहां का हर नागरिक, हर आंख उन्हें देखने को बेताब थी। महिलाओं और बच्चों ने उन्हें परंपरागत सफेद स्कार्फ भेंट किया — मित्रता और शांति का प्रतीक।
तेजपुर से शुरू हुई निर्वासन की यात्रा, मिला सोने का छाता और लाखों दिलों का प्यार
Dalai Lama जब मंच पर पहुंचे तो उन्हें धूप से बचाने के लिए स्वर्ण छाता लेकर एक अधिकारी साथ चल रहा था। उनकी एक झलक पाने को भीड़ उमड़ पड़ी थी। तेजपुर रेलवे स्टेशन पर उनके लिए विशेष भोजन की व्यवस्था की गई थी — बर्तन साफ किए गए, मुर्गियों की टोकरी मंगवाई गई। यह सिर्फ मेहमाननवाजी नहीं, भारत की आत्मीयता का प्रतीक था।
नेहरू से मोदी तक हर प्रधानमंत्री से रहे संबंध
भारत आने के बाद Dalai Lama ने हर प्रधानमंत्री से अच्छे संबंध बनाए — चाहे वो Jawaharlal Nehru रहे हों या Narendra Modi। भारत ने उन्हें न केवल जगह दी बल्कि एक मंच भी दिया जिससे वे विश्वभर में शांति, करुणा और सहअस्तित्व का संदेश दे सकें।
‘130 साल तक जीवित रहूंगा’ – दलाई लामा की भविष्यवाणी और उसका महत्व
अपने जन्मदिन से एक दिन पहले Dalai Lama ने कहा, “अब तक मैंने बुद्ध धर्म और तिब्बत की सेवा की है, और मेरी आशा है कि मैं 130 वर्षों तक जीवित रहूंगा।” यह न सिर्फ आध्यात्मिक विश्वास है, बल्कि तिब्बतियों के लिए आशा की किरण भी है।
मानवता, सह-अस्तित्व और करुणा की मिसाल बने दलाई लामा
90 साल की उम्र में भी Dalai Lama का जीवन किसी चमत्कार से कम नहीं। उन्होंने राजनीति और धर्म से ऊपर उठकर पूरी दुनिया को जोड़ने की कोशिश की है। उनका संदेश – शांति और सहअस्तित्व, आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1959 में था।